BA Semester-5 Paper-1 Sociology - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 समाजशास्त्र - सरल प्रश्नोत्तर समूह
लोगों की राय

बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 समाजशास्त्र

बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 समाजशास्त्र

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2797
आईएसबीएन :0

Like this Hindi book 0

5 पाठक हैं

समाजशास्त्रीय चिन्तन के अग्रदूत (प्राचीन समाजशास्त्रीय चिन्तन)

प्रश्न- मीड का भूमिका ग्रहण का सिद्धान्त समझाइये।

अथवा
मीड का 'मैं' और 'मुझे' की अवधारणा का वर्णन कीजिए।

उत्तर -

इस सिद्धान्त के माध्यम से मीड ने यह दर्शाने का प्रयास किया कि 'आत्म' के विकास में मानवीय अन्तः क्रिया ही प्रमुख आधार है। इनका कथन है कि "आत्म" का विकास इस बात पर निर्भर करता है कि दूसरे के साथ अन्तः क्रिया करते हुए व्यक्ति स्वयं को सबके सामने एक वस्तु के रूप में प्रस्तुत करने की कितनी योग्यता रखता है। अर्थात् दूसरों का बोध होने के बाद ही स्वयं का बोध सम्भव है। बच्चा पहले पहल स्वयं अपने तथा दूसरों में अन्तर या भेद नहीं कर पाता। इसलिए वह जब खिलौने से खेलता है तो उन्हें भी जानदार मान लेता है और उनके प्रति भी वैसा ही व्यवहार करता है। जैसा कि उसके प्रति उसके माता-पिता व्यवहार करते हैं। दूसरे शब्दों में बच्चा अपने माता-पिता की भूमिका अदा करता है और खिलौने या गुड़िया से स्वयं अपनी भूमिका अदा करवाता है पर इसमें भी महत्वपूर्ण बात यह है कि गुड़िया के साथ मां की भूमिका अदा करते समय छोटी लड़की केवल मां की ही भूमिका की प्रतिक्रिया भी करती है, जैसा की वह अपनी माता के प्रति करती है। इस प्रकार दूसरे की भूमिका ग्रहण करने और उसके प्रतिक्रिया करने से ही सामाजिक 'आत्म' का उद्भव होता है।

यह वास्तव में तब होता है जब बच्चा यह अनुभव करता है कि माता-पिता के व्यवहारों की प्रतिक्रिया में वह जैसा व्यवहार करता है, गुड़िया उसके व्यवहारों की प्रतिक्रिया में वैसा व्यवहार नहीं करती है। अतः बच्चे में धीरे-धीरे यह ज्ञान उत्पन्न हो जाता है कि वह स्वयं माता या पिता नहीं है न कि गुड़िया या खिलौना वह स्वयं है, अर्थात् वह इनसे कुछ अलग एक 'वस्तु' है, जिसका अस्तित्व, उसके अनुभवों के आधार पर और लोगों या वस्तुओं से पृथक् है। इसी से बच्चा स्वयं में तथा अन्य लोगों में अन्तर करता है और इस प्रकार उसके "आत्म" का विकास होता है। जार्ज मीड ने अन्य विद्वानों की भांति संदेश वाहन, एकात्मीकरण तथा भूमिका ग्रहण को "आत्म" के विकास में प्रमुख कारण ही नहीं माना, अपितु इन्हीं के सन्दर्भ में एक गतिशील सिद्धान्त भी प्रस्तुत किया। इस सिद्धान्त में मीड ने दूसरों से ग्रहण की हुई भूमिकाओं के प्रति व्यक्ति की प्रतिक्रिया को अधिक महत्व प्रदान किया है।

आपके अनुसार व्यक्ति का व्यवहार या भूमिका केवल मात्र दूसरों से ग्रहण की हुई भूमिकाएँ मात्र नहीं होती अर्थात् "आत्म" केवल विशिष्ट और सामान्य भूमिकाओं का अर्थात् कई "मुझे " का संकलन मात्र नहीं होता अपितु इस "मुझे" के प्रति स्वयं व्यक्ति की अर्थात् "मैं" (I) की क्या प्रतिक्रिया होती है, यह बात भी महत्वपूर्ण होती है। इस प्रकार 'आत्म' के विकास की प्रक्रिया को दर्शाने के लिए मीड ने जेम्स का अनुरग करते हुए "मैं" (I) की अवधारणा को विकसित किया, जो कि "मुझे" या "दूसरे" अर्थात् एकात्मीकरण के द्वारा दूसरों के विशिष्ट या सामान्य भूमिकाओं को ग्रहण करने से भिन्न है। मीड के मतानुसार एक क्रियाशील "आत्म" को "मै" और "मुझे दोनों को ही संयुक्त प्रतिफल मानना चाहिए।

'मुझे' का तात्पर्य, मीड के अनुसार, उन कार्यों तथा मनोवृत्तियों से है जो व्यक्ति अपने माता- पिता, सगे-सम्बन्धियों तथा खेल के साथियों और बाद में अपने शिक्षकों उपदेशकों, पुलिस के लोगों यहां तक कि काल्पनिक चरित्रों से भी ग्रहण करता है तथा अपनी क्रिया तथा विचार में घुला- मिला लेता है। इस प्रकार एकात्मीकरण की प्रक्रिया द्वारा दूसरे व्यक्तियों के विशिष्ट तथा सामान्य भूमिकाओं तथा विचारों को अपने स्वयं के भूमिकाओं तथा विचारों के रूप में ग्रहण करना ही "मुझे" की अभिव्यक्ति है पर मैं (I) का तात्पर्य कर्ता के रूप में "आत्म" है और भी स्पष्ट रूप में जब बच्चा दूसरों की भूमिका को ग्रहण करते हुए स्वयं कार्य करता है तो वह केवल उनके कार्यों को ही नहीं दुहराता, वरन् दूसरे लोगों के उन कार्यों तथा उसकी अपनी प्रतिक्रियाओं के बीच होने वाली अन्तः क्रिया के फलस्वरूप अपनी भूमिका में कुछ नए तत्व भी जोड़ लेता है। इन्हीं प्रतिकियाओं को "मै" कहते हैं।

आरम्भ में यह "मै" उन आवश्यकताओं तथा प्रेरणाओं से बना होता है, जो व्यक्ति के सावयव को व्यवहार के एक चक्र के अन्तर्गत ले आती है, अर्थात् उसे एक निश्चित प्रकार से व्यवहार करने को बाध्य करती है पर दूसरों के साथ अन्तःक्रिया के दौरान यह क्रियाशील "मै" विविध "मुझे" द्वारा अर्थात् उन भूमिकाओं द्वारा जिन्हें व्यक्ति ने दूसरों से ग्रहण करके "अपना" बना लिया है, प्रभावित होता रहता है। संक्षेप में हम कह सकते हैं कि "मै" व्यक्ति की दूसरों की मनोवृत्ति के प्रति प्रतिक्रिया है, जबकि "मुझे दूसरों की मनोवृत्तियों का एक संगठित स्वरूप है जिसे व्यक्ति ने स्वयं अपना लिया है। "मुझे" के अन्दर हमारे समस्त पिछले अनुभव सम्मिलित होते हैं, "मैं" द्वारा अपनाया हुआ मनोवृत्तियों तथा विचारों का संगठन, अर्थात् 'मुझे' व्यक्ति के बाह्य व्यवहार का आधार होता है। मीड के अनुसार "मै" को केवल स्मृति में ही जाना जा सकता है। यद्यपि "मै" सदैव वर्तमान में कार्य करता है पर वर्तमान में कार्य करने के तुरन्त बाद ही वह भूत में चला जाता है और हमारे "मुझे" के अन्दर सम्मिलित हो जाता है अर्थात् "मुझे " का एक अंग बन जाता है। इसीलिए मीड के अनुसार "मैं" या कर्ता को ऐतिहासिक अनुदर्शी के रूप में ही देखा जा सकता है।

पूर्ण रूप से विकसित "आत्म" या जिसे हम समाजीकृत व्यक्ति कहते हैं, वास्तव में दो आत्मों का संयोग होता है एक तो वह आत्म है जो व्यक्ति की प्राणी शास्त्रीय प्रकृति पर आधारित है और दूसरा वह जो एकात्मीकरण के आधार पर दूसरे व्यक्तियों की भूमिकाओं व उनकी मनोवृत्तियों को व्यक्ति द्वारा ग्रहण कर लेने या अपना बना लेने के फलस्वरूप विकसित होता है। इनमें से पहले को हम "मै" " कहते हैं और दूसरो को "मुझे"। प्रायः इस "मै" और "मुझे" के बीच अर्थात् व्यक्ति की अपनी आवश्यकताओं और प्रवृत्तियों तथा उन सामाजिक मनोवृत्तियों व भूमिकाओं के बीच संघर्ष होता है जिन्हें व्यक्ति दूसरे व्यक्तियों से ग्रहण करता है। पूर्ण रूप से समाजीकृत व्यक्ति वह है जो इस प्रकार के संघर्ष को बहुत कुछ समाप्त करने में सफल होता है अर्थात् जिसने "मै" और "मुझे" का इस प्रकार एकीकरण किया है कि उसने अपनी आवश्यकताएँ व प्रवृत्तियां दूसरे लोगों से ग्रहण की हुई मनोवृत्तियों तथा भूमिकाओं के अनुकूल बैठती हैं। अतः स्पष्ट है कि सम्पूर्ण आत्म या व्यक्तित्व के विकास में "मै" और "मुझे दोनों का ही सहयोग रहता है। "मैं" सदैव "मुझे" से सम्बन्धित रहता है।

उनके इस सम्बन्ध के विषय में मीड ने लिखा है, "जहां तक आचरण के अन्दर विद्यमान उत्तरदायित्वों को पूरा करने का सम्बन्ध है, "मुझे" को एक प्रकार के "मै" की आवश्यकता होती है परन्तु "मै" सदैव ही स्वयं परिस्थिति की अपनी मांग से भिन्न होता है। इसलिए यदि हम चाहें तो सदैव ही "मैं" और "मुझे” में यह अन्तर बता सकते हैं। "मैं" और "मुझे" को ललकारता है और उसका प्रत्युत्तर भी देता है। "मै" और "मुझे दोनों मिलकर सामाजिक अनुभव में प्रकट होने वाले व्यक्तित्व का निर्माण करते हैं। "आत्म" आवश्यक रूप में एक ऐसी सामाजिक प्रक्रिया है जो कि दूसरे से पृथक् किए जा सकने वाले दन दो पक्षों ('मै' और 'मुझे') के साथ-साथ चलती है। यदि "आत्म" के ये दो पक्ष न हों तो न तो कोई चेतन उत्तरदायित्व हो और न ही अनुभव में कोई नवीनता आए।

अतः स्पष्ट है कि "मैं" और "मुझे" तार्किक रूप से एक-दूसरे से भिन्न परिस्थितियों के प्रति प्रतिक्रियाओं में आपस में मिल-जुलकर ही कार्य करते हैं पर इसका तात्पर्य यह नहीं है कि उनमें विरोध होता ही नहीं। अधिकतम सामाजिक परिस्थितियों में "मैं" पर "मुझे" का एक दबाव या प्रभाव रहता ही है।

...पीछे | आगे....

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. प्रश्न- समाजशास्त्र के उद्भव की ऐतिहासिक, सामाजिक, आर्थिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
  2. प्रश्न- समाजशास्त्र के उद्भव में सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  3. प्रश्न- समाजशास्त्र के विकास में सोलहवीं शताब्दी से उन्नीसवीं शताब्दी तक के वैज्ञानिक चिन्तन के योगदान की समीक्षा कीजिए।
  4. प्रश्न- औद्योगिक क्रान्ति क्या है? इसके प्रमुख प्रभाव बताइए।
  5. प्रश्न- औद्योगिक क्रान्ति के प्रमुख प्रभाव बताइए।
  6. प्रश्न- औद्योगिक क्रान्ति के सामाजिक प्रभाव बताइये।
  7. प्रश्न- औद्योगिक क्रान्ति के आर्थिक प्रभाव बताइए।
  8. प्रश्न- औद्योगिक क्रान्ति के फलस्वरूप समाज व अर्थव्यवस्था पर क्या अच्छे प्रभाव हुए।
  9. प्रश्न- औद्योगिक क्रान्ति के फलस्वरूप समाज व अर्थव्यवस्था पर क्या बुरे प्रभाव हुए।
  10. प्रश्न- राजनीतिक व्यवस्था से क्या आशय है? भारतीय राजनीतिक व्यवस्था के निर्धारक तत्वों को बताइए।
  11. प्रश्न- भारतीय राजनीतिक व्यवस्था के निर्धारक तत्वों को बताइए।
  12. प्रश्न- औद्योगिक क्रान्तियों ने कैसे समाजशास्त्र की आधारशिला एक स्वतन्त्र अध्ययन के रूप में रखी? विवेचना कीजिए।
  13. प्रश्न- औद्योगिक क्रान्ति के क्या सामाजिक एवं राजनीतिक परिणाम हुये?
  14. प्रश्न- भारत में समाजशास्त्र के उद्भव एवं विकास को संक्षेप में समझाइये।
  15. प्रश्न- ज्ञानोदय से आप क्या समझते हैं। वैज्ञानिक पद्धति की प्रकृति और सामाजिक घटनाओं के अध्ययन में वैज्ञाकि पद्धति के प्रयोग का वर्णन कीजिए।
  16. प्रश्न- "समाजशास्त्र एक नवीन विज्ञान है।" विवेचना कीजिए।
  17. प्रश्न- फ्रांस की क्रान्ति से आप क्या समझते हैं?
  18. प्रश्न- समाजशास्त्र को परिभाषित कीजिये।
  19. प्रश्न- भारत में समाजशास्त्र का महत्व बताइये।
  20. प्रश्न- कॉम्ट के प्रत्यक्षवाद की विवेचना कीजिए।
  21. प्रश्न- कॉम्टे द्वारा प्रतिपादित चिन्तन की तीन अवस्थाओं के नियम की उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।
  22. प्रश्न- कॉम्टे की प्रमुख देन की परीक्षा कीजिये।
  23. प्रश्न- अगस्त कॉम्ट का जीवन परिचय दीजिए।
  24. प्रश्न- कॉम्ट के मानवता के धर्म का नैतिकता आधार क्या है?
  25. प्रश्न- संस्तरण के आधार अथवा सिद्धान्त बताइये।
  26. प्रश्न- समाजशास्त्र में प्रत्यक्षवादी पद्धतिशास्त्र की मुख्य विशेषतायें कौन-कौन सी हैं?
  27. प्रश्न- कॉम्ट के विज्ञानों का वर्गीकरण प्रत्यक्षवाद से किस प्रकार सम्बन्धित है?
  28. प्रश्न- कॉम्ट की प्रमुख देन की परीक्षा कीजिए।
  29. प्रश्न- प्रत्यक्षवाद क्या है?
  30. प्रश्न- कॉम्टे के प्रत्यक्षवाद को परिभाषित कीजिये।
  31. प्रश्न- तात्विक अवस्था क्या है?
  32. प्रश्न- सामाजिक डार्विनवाद से आपका क्या तात्पर्य है?
  33. प्रश्न- स्पेन्सर द्वारा प्रस्तुत 'सामाजिक उद्विकास' के सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
  34. प्रश्न- हरबर्ट स्पेन्सर का जीवन परिचय दीजिए।
  35. प्रश्न- हरबर्ट स्पेन्सर के 'सामाजिक नियन्त्रण के साधन' सम्बन्धी विचार बताइए।
  36. प्रश्न- स्पेन्सर द्वारा प्रतिपादित सावयवी सिद्धान्त की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  37. प्रश्न- समाजशास्त्र के क्षेत्र में हरबर्ट स्पेन्सर के योगदान का उल्लेख कीजिए।
  38. प्रश्न- अधिसावयव उद्विकास की अवधारणा पर प्रकाश डालिए।
  39. प्रश्न- दुर्खीम के सामाजिक एकता के सिद्धान्त की विस्तृत विवेचना कीजिए।
  40. प्रश्न- यान्त्रिक व सावयवी एकता से सम्बन्धित वैधानिक व्यवस्थाएं क्या हैं?
  41. प्रश्न- दुर्खीम के श्रम विभाजन सिद्धान्त की आलोचनात्मक विवेचना कीजिए।
  42. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के सिद्धान्त को समझाइए।
  43. प्रश्न- समाजशास्त्र के विकास में दुर्खीम का योगदान बताइए।
  44. प्रश्न- दुर्खीम के आत्महत्या सिद्धान्त की आलोचनात्मक जाँच कीजिए।
  45. प्रश्न- दुर्खीम द्वारा वर्णित आत्महत्या के प्रकारों की विवेचना कीजिए।
  46. प्रश्न- दुर्खीम के आत्महत्या सिद्धान्त के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  47. प्रश्न- 'आत्महत्या सामाजिक कारकों की उपज है न कि वैयक्तिक कारकों की। दुर्खीम के इस कथन की विवेचना कीजिए।
  48. प्रश्न- दुखींम का समाजशास्त्रीय योगदान बताइये।
  49. प्रश्न- दुखींम ने समाजशास्त्र की अध्ययन पद्धति को समृद्ध बनाया, व्याख्या कीजिए।
  50. प्रश्न- दुर्खीम की कृतियाँ कौन-कौन सी हैं? स्पष्ट कीजिए।
  51. प्रश्न- इमाइल दुर्खीम के जीवन-चित्रण तथा प्रमुख कृतियों पर प्रकाश डालिए।
  52. प्रश्न- कॉम्ट तथा दुखींम की देन की तुलना कीजिए।
  53. प्रश्न- श्रम विभाजन समझाइये।
  54. प्रश्न- दुर्खीम ने यान्त्रिक तथा सावयवी एकता में अन्तर किस प्रकार किया है?
  55. प्रश्न- श्रम विभाजन के कारण बताइए।
  56. प्रश्न- दुखींम के अनुसार श्रम विभाजन के कौन-कौन से परिणाम घटित हुए? स्पष्ट कीजिए।
  57. प्रश्न- दुर्खीम के पद्धतिशास्त्र की विशेषताएँ लिखिए।
  58. प्रश्न- श्रम विभाजन, सावयवी एकता से किस प्रकार सम्बन्धित है?
  59. प्रश्न- यान्त्रिक संश्लिष्टता तथा सावयविक संश्लिष्टता के बीच अन्तर कीजिए।
  60. प्रश्न- दुर्खीम के सामूहिक प्रतिनिधान के सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।
  61. प्रश्न- दुर्खीम का पद्धतिशास्त्र पूर्णतया समाजशास्त्री है। विवेचना कीजिए।
  62. प्रश्न- सामाजिक एकता क्या है?
  63. प्रश्न- आत्महत्या का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
  64. प्रश्न- अहम्वादी आत्महत्या के सम्बन्ध में दुर्खीम के विचारों की विवेचना कीजिए।
  65. प्रश्न- दुर्खीम के अनुसार आत्महत्या के कारणों की विवेचना कीजिए।
  66. प्रश्न- सामाजिक एकता पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  67. प्रश्न- सामाजिक तथ्य पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  68. प्रश्न- दुर्खीम द्वारा प्रतिपादित 'समाजशास्त्रीय पद्धति' के नियम क्या हैं?
  69. प्रश्न- दुखींम की सामाजिक चेतना की अवधारणा का उदाहरण सहित वर्णन कीजिए।
  70. प्रश्न- परेटो की वैज्ञानिक समाजशास्त्र की अवधारणा क्या है?
  71. प्रश्न- परेटो के अनुसार समाजशास्त्र की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं?
  72. प्रश्न- परेटो की वैज्ञानिक समाजशास्त्र की अवधारणा का वर्णन कीजिए।
  73. प्रश्न- पैरेटो ने समाजशास्त्र को एक तार्किक प्रयोगात्मक विज्ञान नाम क्यों दिया? उनकी तार्किक प्रयोगात्मक पद्धति की प्रमुख विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
  74. प्रश्न- विशिष्ट चालक की अवधारणा का वर्णन कीजिए।
  75. प्रश्न- भ्रान्त-तर्क की अवधारणा स्पष्ट कीजिए।
  76. प्रश्न- "इतिहास कुलीन तन्त्र का कब्रिस्तान है।" इस कथन की विवेचना कीजिए।
  77. प्रश्न- पैरेटो की तार्किक एवं अतार्किक क्रियाओं की अवधारणा स्पष्ट कीजिए।
  78. प्रश्न- विलफ्रेडो परेटो की प्रमुख कृतियों के साथ संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  79. प्रश्न- विशिष्ट चालक का महत्व बताइए।
  80. प्रश्न- भ्रान्त-तर्क का वर्गीकरण कीजिए।
  81. प्रश्न- परेटो का समाजशास्त्र में योगदान संक्षेप में बताइए।
  82. प्रश्न- तार्किक और अतार्किक क्रिया की तुलना कीजिए।
  83. प्रश्न- पैरेटो के अनुसार शासकीय तथा अशासकीय अभिजात वर्ग की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?
  84. प्रश्न- कार्ल मार्क्स के 'ऐतिहासिक भौतिकवाद' से आप क्या समझते हैं?
  85. प्रश्न- मार्क्सवादी सामाजिक परिवर्तन की धारणा क्या है? समझाइए।
  86. प्रश्न- मार्क्स के अनुसार वर्ग संघर्ष का वर्णन कीजिए।
  87. प्रश्न- मार्क्स के विचारों में समाज में वर्गों का जन्म कब और क्यों हुआ?
  88. प्रश्न- मार्क्स ने वर्गों की सार्वभौमिक प्रकृति को कैसे स्पष्ट किया है?
  89. प्रश्न- पूर्व में विद्यमान वर्ग संघर्ष की धारणा में मार्क्स ने क्या जोड़ा?
  90. प्रश्न- मार्क्स ने 'वर्ग संघर्ष' की अवधारणा को किस अर्थ में प्रयुक्त किया?
  91. प्रश्न- मार्क्स के वर्ग संघर्ष के विवेचन में प्रमुख कमियाँ क्या रही हैं?
  92. प्रश्न- वर्ग और वर्ग संघर्ष की विवेचना कीजिए।
  93. प्रश्न- पूँजीवादी समाज में अलगाव की स्थिति तथा इसके कारकों की विवेचना कीजिए।
  94. प्रश्न- संक्षेप में अलगाव के स्वरूपों को समझाइये।
  95. प्रश्न- मार्क्स ने पूँजीवाद की प्रकृति के विनाश के किन कारणों का उल्लेख किया है?
  96. प्रश्न- पूँजीवाद में ही वर्ग संघर्ष अपने चरम सीमा पर क्यों पहुँचा?
  97. प्रश्न- मार्क्स के द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद के सिद्धान्त की समीक्षा कीजिए।
  98. प्रश्न- 'कार्ल मार्क्स के अनुसार ऐतिहासिक भौतिकवाद की व्याख्या कीजिए।
  99. प्रश्न- ऐतिहासिक भौतिकवाद की व्याख्या कीजिए।
  100. प्रश्न- मार्क्स के ऐतिहासिक युगों के विभाजन को स्पष्ट कीजिए।
  101. प्रश्न- मार्क्स के ऐतिहासिक सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  102. प्रश्न- द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद से आप क्या समझते हैं? व्याख्या कीजिये।
  103. प्रश्न- समाजशास्त्र को मार्क्स का क्या योगदान मिला?
  104. प्रश्न- मार्क्स ने समाजवाद को क्या योगदान दिया?
  105. प्रश्न- साम्यवादी समाज के निर्माण के लिये मार्क्स ने क्या कार्य पद्धति सुझाई?
  106. प्रश्न- मार्क्स ने सामाजिक परिवर्तन की व्याख्या किस तरह से की?
  107. प्रश्न- मार्क्स की सामाजिक परिवर्तन की व्याख्या में प्रमुख कमियाँ क्या रहीं?
  108. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के बारे में मार्क्स के विचारों को स्पष्ट कीजिए।
  109. प्रश्न- कार्ल मार्क्स का संक्षिप्त जीवन-परिचय तथा प्रमुख कृतियों का वर्णन कीजिए।
  110. प्रश्न- द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  111. प्रश्न- द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद की मुख्य विशेषताएँ बताइये।
  112. प्रश्न- सामाजिक विकास की विभिन्न अवस्थाएँ क्या हैं?
  113. प्रश्न- वर्ग को लेनिन ने किस तरह से परिभाषित किया?
  114. प्रश्न- आदिम साम्यवादी युग में वर्ग और श्रम विभाजन का कौन सा स्वरूप पाया जाता था?
  115. प्रश्न- दासत्व युग में वर्ग व्यवस्था की व्याख्या कीजिए।
  116. प्रश्न- सामंती समाज में वर्ग व्यवस्था का कौन-सा स्वरूप पाया जाता था?
  117. प्रश्न- फ्रांस की क्रान्ति के महत्व एवं परिणामों की विवेचना कीजिए।
  118. प्रश्न- कार्ल मार्क्स के इतिहास दर्शन का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिए।
  119. प्रश्न- कार्ल मार्क्स के अनुसार वर्ग की अवधारणा की विवेचना कीजिए।
  120. प्रश्न- मार्क्स द्वारा प्रस्तुत वर्ग संघर्ष के कारणों की विवेचना कीजिए।
  121. प्रश्न- समाजशास्त्र के संघर्ष सम्प्रदाय में मार्क्स और डेहरनडार्फ की तुलना कीजिए।
  122. प्रश्न- मार्क्स के विचारों का मूल्यांकन कीजिए।
  123. प्रश्न- "हीगल ने 'आत्म-चेतना' के अलगाव की चर्चा की है जबकि मार्क्स ने श्रम के अलगाव की।" स्पष्ट कीजिए।
  124. प्रश्न- मार्क्स के राज्य सम्बन्धी विचारों को स्पष्ट कीजिए।
  125. प्रश्न- कार्ल मार्क्स के ऐतिहासिक भौतिकवाद के आवश्यक लक्षणों की आलोचनात्मक परीक्षा कीजिए।
  126. प्रश्न- सामाजिक विकास की विभिन्न अवस्थाएँ क्या हैं?
  127. प्रश्न- सर्वहारा क्रान्ति की विशेषताएँ बताइये।
  128. प्रश्न- मार्क्स के अनुसार अलगाववाद के लिए उत्तरदायी कारकों पर प्रकाश डालिए।
  129. प्रश्न- मार्क्स का आर्थिक निश्चयवाद का सिद्धान्त बताइये। 'सामाजिक परिवर्तन' के लिए इसकी सार्थकता बताइए।
  130. प्रश्न- सत्ता की अवधारणा स्पष्ट कीजिए। सत्ता कितने प्रकार की होती है?
  131. प्रश्न- मैक्स वेबर द्वारा वर्णित सत्ता के प्रकारों की व्याख्या कीजिए।
  132. प्रश्न- मैक्स वेबर के अनुसार समाजशास्त्र को परिभाषित कीजिए।
  133. प्रश्न- वेबर के धर्म का समाजशास्त्र क्या है? बताइए।
  134. प्रश्न- आदर्श प्रारूप की धारणा का वर्णन कीजिए।
  135. प्रश्न- मैक्स वेबर के "पूँजीवाद की आत्मा' सम्बन्धी विचारों की संक्षिप्त व्याख्या कीजिये।
  136. प्रश्न- वेबर के समाजशास्त्र में योगदान पर एक लेख लिखिये।
  137. प्रश्न- मैक्स वेबर का संक्षिप्त जीवन-परिचय दीजिए।
  138. प्रश्न- मैक्स वेबर की धर्म के समाजशास्त्र की कौन-कौन सी विशेषताएँ हैं? स्पष्ट करें।
  139. प्रश्न- मैक्स वेबर की प्रमुख रचनाएँ बताइए।
  140. प्रश्न- मैक्स वेबर का पद्धतिशास्त्र क्या है? इसकी विशेषताएँ बताइये।
  141. प्रश्न- वेबर का धर्म का सिद्धान्त क्या है?
  142. प्रश्न- मैक्स वेबर के आदर्श प्रारूप पर टिप्पणी लिखिए।
  143. प्रश्न- प्रोटेस्टेण्ट आचार क्या है? व्याख्या कीजिए।
  144. प्रश्न- मैक्स वेबर के सामाजिक क्रिया सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
  145. प्रश्न- सामाजिक विचार के सन्दर्भ में मैक्स वेबर के योगदान का परीक्षण कीजिए।
  146. प्रश्न- शक्ति की अवधारणा की विवेचना कीजिए।
  147. प्रश्न- दुर्खीम एवं वेबर के धर्म के सिद्धान्त की तुलना आप किस तरह करेंगें?
  148. प्रश्न- सामाजिक विज्ञान की पद्धति के निर्माण में मैक्स वेबर के योगदान का वर्णन कीजिए।
  149. प्रश्न- वेबर द्वारा प्रस्तुत 'सामाजिक क्रिया' के वर्गीकरण का परीक्षण कीजिए।
  150. प्रश्न- अन्तः क्रिया का क्या अर्थ है? अन्तःक्रिया के प्रकारों का उल्लेख करिये।
  151. प्रश्न- प्रतीकात्मक अन्तः क्रियावाद क्या है? प्रतीकात्मक अन्तर्क्रियावादी सिद्धान्त की मान्यताएँ समझाइये।
  152. प्रश्न- जार्ज हरबर्ट मीड का प्रतीकात्मक अन्तः क्रियावाद बतलाइये।
  153. प्रश्न- मीड का भूमिका ग्रहण का सिद्धान्त समझाइये।
  154. प्रश्न- प्रतीकात्मक का क्या अर्थ है?
  155. प्रश्न- प्रतीकात्मकवाद की विशेषताएँ बताइये।
  156. प्रश्न- प्रतीकों के भेद या प्रकार बताइये।
  157. प्रश्न- सामाजिक जीवन में प्रतीकों का क्या महत्व है?
  158. प्रश्न- टालकॉट पारसन्स का संक्षिप्त परिचय देते हुए उनकी कृतियों का उल्लेख कीजिये।
  159. प्रश्न- टालकाट पारसन्स का "सामाजिक क्रिया" का सिद्धान्त प्रस्तुत कीजिये।
  160. प्रश्न- टालकॉट पारसन्स का सामाजिक व्यवस्था सिद्धान्त का वर्णन कीजिये।
  161. प्रश्न- आर. के. मर्टन का संक्षिप्त जीवन परिचय व रचनाएँ लिखिए।
  162. प्रश्न- आर. के. मर्टन की आर्थिक और सामाजिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिये।
  163. प्रश्न- आर. के. मर्टन की बौद्धिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिये।
  164. प्रश्न- मध्य-अभिसीमा सिद्धान्त का अर्थ व प्रकृति को समझाइये।
  165. प्रश्न- आर. के. मर्टन का "प्रकट एवं अव्यक्त कार्य सिद्धान्त को समझाइये।
  166. प्रश्न- टॉलकाट पारसन्स के पैटर्न वैरियबल की चर्चा कीजिये।

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book